श्रीमद्भगवद्गीता महृषि वेदव्यास कृत श्री महाभारत शास्त्र के अंतर्गत भीष्मपर्व के 25वें अध्याय से आरम्भ करके 42वें अध्याय तक 18 अध्यायों में सम्पूर्ण हुआ है। श्री महाभारत शास्त्र के इन 18 अध्यायों का नाम श्रीमद्भगवद्गीता है। अतः श्रीमद्भगवद्गीता कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नही है अपितु श्री महाभारत शास्त्र का एक लघु अंश है। यह लघु अंश होते हुए भी सर्वशास्त्रमय है। जैसा कि श्री महाभारत में कहा गया है कि सर्वशास्त्रमयी गीता- यह गीता सर्वशास्त्रमयी है, समस्त शास्त्रों का सार-सार इस श्रीमद्भगवद्गीता में समाविष्ट है। यह श्रीमद्भगवद्गीता 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में पूर्ण हुई है।
श्रीमद्भगवद्गीता के दो संवाद है-
श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता का मुख्य संवाद है। श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार साक्षात परंब्रह्म है, परमेश्वर है और श्री अर्जुन जी उनके सखा भाव के नित्य परिकर है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश करते है।
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 700 श्लोक है और 18 अध्याय है। श्रीमद्भगवद्गीता की गणना प्रस्थानत्रयी के अंतर्गत की जाती है। प्रस्थानत्रयी वेदांत के तीन आधार स्तंभ माने जाते है।
ये तीन दिव्य शास्त्र शुद्ध ब्रह्म विषयक शास्त्र है, परमात्म विषय, ब्रह्म विद्या है। उपनिषद जिनमें मुख्य उपनिषदें 108 है ये मूल चार वेदों के सार भाग है। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का सार भाग है, ब्रह्मसूत्र मुख्य उपनिषदों का सारभाग है सूत्र रुप में।
उपनिषदों में मन्त्र होते है। श्रीमद्भगवद्गीता में श्लोक होते है और ब्रह्मसूत्र में सूत्र होते है, वाक्यांश होते है। उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र ये तीनों प्रस्थानत्रयी के नाम से विख्यात है। ये तीनों वैदिक सनातन धर्म में अध्यात्म ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माने जाते है। इन तीनों की शरण ग्रहण करने से जीवात्मा इस भौतिक संसार के जन्म-मरण के चक्र से छूटकर परमधाम की तरफ प्रस्थान कर जाती है इसलिए इन तीनों ग्रन्थों को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है।
इस प्रस्थानत्रयी में श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीमद्भगवद्गीता , उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों का भी भाष्य स्वरूप है अर्थात् श्रीमद्भगवद्गीता उपनिषदों का अर्थ करने में और ब्रह्मसूत्रों का अर्थ करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अध्यात्म ज्ञान का सर्वोच्च ग्रंथ है।
गीता माहात्मय गीता प्रतिपाद्यश्रीकृष्ण को जानो।
श्रीकृष्ण को मानो।
श्रीकृष्ण के बन जाओ।