श्री गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय तत्त्वाचार्य विश्वगुरु श्रील जीव गोस्वामी पाद जी
परमब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण ही अद्वय ज्ञान तत्त्व हैं क्योंकि वह विजातीय , सजातीय एवं स्वगत भेदों से रहित है | वे स्वयंसिद्ध हैं , परम पूर्ण हैं अर्थात् उनकी भगवत्ता किसी अन्य की भगवत्ता पर आश्रित नहीं है |
कृष्णतत्त्ववेत्ताश्री तेजस्वी दास जी
हरिनाम का जप व कीर्तन करने से सभी प्रकार के पाप-संचित, प्रारब्ध, क्रियमाण, कूट, अप्रारब्ध और बीजत्त्व नष्ट हो जाते हैं | हरिनाम सभी पापों को जड़ से उखाड़ देता है, इसलिए हरिनाम का जप व कीर्तन प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए |
कृष्णतत्त्ववेत्ताश्री तेजस्वी दास जी
जीव अपने आपको माया द्वारा सम्मोहित होकर त्रिगुणात्मक मानता है जबकि जीव चिद् रूप है और माया से श्रेष्ठ है | ऐसा मानने से जीव संसार रूपी विपद में पतन को प्राप्त करता है, अनर्थ को स्वीकार करता है |
कृष्णतत्त्ववेत्ताश्री तेजस्वी दास जी
कलियुग में केवल "हरिनाम" ही भगवद्प्राप्ति का और भगवान् को प्रसन्न करने का सर्वप्रमुख साधन है |
कृष्णतत्त्ववेत्ताश्री तेजस्वी दास जी
ज्ञानयोग, ध्यानयोग, वर्णाश्रम धर्म, तप और त्याग इन जड़ साधनों के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण को वश में नहीं किया जा सकता केवल भक्ति ही एकमात्र चिन्मय व दिव्य साधन है जिसके द्वारा भगवान् भक्त के वशीभूत हो जाते हैं |
कृष्णतत्त्ववेत्ताश्री तेजस्वी दास जी